प्रेमचंद ने सेवासदन से हिन्दी उपन्यास की दिशा
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सामाजिक परिवर्तन और विकास में साहित्य की विषिष्ट भूमिका होती है। प्रेमचन्द साहित्य को जीवन की आलोचनाप मानते थे। जीवन की सकारात्मक आलोचना से साहित्य जीवन और समाज के परिवर्तन तथा विकास में अपनी भूमिका अदा करता है। साहित्य की इसी भूमिका को संभव बनाने के लिए प्रेमचन्द साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है। संस्थान का उद्देश्य प्रेमचन्द और उनकी विचारधारा के समस्त सर्जनात्मक साहित्य का अध्ययन मूल्यांकन तथा प्रचार-प्रसार करना है।